Thursday, July 5, 2018

घर वापसी (भाग ६- "वापस घर जाने की आस")



भाग ६ (वापस घर जाने की आस)





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भाग- १ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_99.html 

भाग -२ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_25.html

भाग ३ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_72.html

भाग ४ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_27.html

भाग ५ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/06/blog-post_13.html















न जाने इतना अपनापन क्यों महसूस होने लगा है। ... धीरे धीरे वापसी की उम्मीद होने लगी है।









कैलाश
ने मुझसे रत्नेश का फ़ोन नंबर और एड्रेस लिया... रत्नेश ने फ़ोन नंबर बदल
लिया था शायद ...किसी तरह उसका नया फ़ोन नंबर ढूँढ के वो ले आया और उसको कॉल
लगाया।










रत्नेश
की बस आवाज़ सुनके ही, मेरे दिल को तसल्ली हो चुकी थी कि कोई मेरा अपना,
मेरा इंतज़ार कर रहा होगा... मुझे ढूंढ़ने की कोशिश तो ज़रूर की होगी उन्होंने
... मगर इस जगह पहुंच नहीं पाए होंगे।









बात करने का दिल तो
था, पर समझ नहीं आया की बात कैसे करू. सो सिर्फ उनकी आवाज़ भर सुनके ही दिल
खुश कर लिया। एक बार तो मैंने अपने बेटे की आवाज़ भी सुनी, उसी ने फोन उठाया
था... बड़ा  हो गया है अब, पहले से थोड़ा समझदार भी। बिलकुल अपने पापा जैसा
अंदाज़ बात करने का। ... न जाने कब देख पाऊँगी उन दोनों को...  उन्हें देखने
भर की आस है।







                      वापस घर जाने की आस














 घर
वापसी की ख़ुशी मेरे चेहरे पर से नहीं हटती।मगर एक अजीब सा डर दिल को ज़ोर
से धड़का जाता है। रातों को नींद भी नहीं आती, कि कहीं ये सपना टूट ही न
जाए।









कैलाश कह गया था की ७ दिन बाद वो पूरी तैयारी 
साथ, मुझे यहाँ से निकाल लेगा, लेकिन अम्माजी को भनक लगी तो शायद बहुत बड़ी
मुसीबत बन सकती है। डर के मारे मेरे हाथ कपकपा जाते अम्माजी को  देखते
ही।







सच में, डर का साया इंसान को कमज़ोर बना देता है, कुछ
सही करने के बजाये गलत ज़्यादा होने का अंदेशा होता... पर मैं कोई गलती
नहीं करनी चाहती थी।










मेरी
इक गलती ने मेरा पूरा जीवन बर्बाद कर दिया ... पर अब आगे आने वाले वक़्त
को मैं संजो के रखना चाहती हूँ, मेरे अपनों के पास... उनके साथ, उसी छत के
नीचे, जहां मैं बिहा के गयी थी , जहां से मेरी अर्थी निकलेगी, मरने के बाद।









"दीदी ... चाय वाले साहब नहीं आये दो दिन से , मायूस हो?" वीना मेरे कंधे पे हाथ रखती हुई बोली।









"हम्म ... मायूस तो नहीं हूँ.. बस इंतज़ार इस बार थोड़ा लम्बा  हो गया... " मेरे मुँह से निकल पड़ा।









"हम्म
! दिल मत लगा लेना उनसे ... इन जैसों के कारण  हम जैसे कितने अधर में
लटकी  रह जाती हैं , न  चैन मिलता है और न ही नींद।  बेवक़ूफ़ बनाने में
अव्वल होते ये लोग लोग... खाया पिया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा बारह आना। वही
हिसाब इनका... भरोसे लायक नहीं , ज़रा संभल के रहना। " वीना की समझाईश में
गुज़ारिश काम और डर ज़्यादा था।










 "भरोसा। .... हम्म्म !सही बोल रही हो, भरोसे लायक तो कोई नहीं इस जहां में। "मैं ठंडी आह भरती हुई, बिस्तर पे आँखें बंद कर लेट गयी।














इस रात की सुबह जाने कब होगी






इमेज : www.storieo.com


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