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Monday, December 4, 2017

कितने बेचैन हो तुम !


                       




























 खिड़किया खुलते ही अंदर धूप  आज कुछ मुरझाई हुई सी लगती है।  शायद तुम्हारे रूठे हुए  चेहरे की हलकी सी तपिश आज दिन भर मुझे भी महसूस होती रहेगी। 












 तुम रूठ के बात भी न करोगे मालूम है मुझे , पर मान भी जाओगे ये भी मुझे यकीन है। चलो मुझे कम से कम देख के मुँह तो मोड़ोगे ... नाक सिकोड़ के आँखें इधर - उधर तो घुमाओगे...पर सच मानो, तुम्हारे रूठने पे ही तो तुम और पास लगते हो।  











अनकहे से अलफ़ाज़ तुम्हारे इशारों से छलक जाते हैं... शरारतें आँखों में बेख़ौफ़ चमकने लगती हैं... और वो   मानने को बेताब दिल.... जिसे तुम बड़ी मुश्किल से थाम रहे हो, साफ़ पता चलता है... कितने बेचैन हो तुम !














इमेज: moziru.com


Life is a withering winter

 When people ask me... do I still remember you? I go in a trance, my lips hold a smile and my eyes are visible with tears about to fall. I r...