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Friday, December 8, 2017

उड़ती धुन्द...




























धुंद के उड़ते कागज़ों पे तुम्हारी यादों के कतरे दिखते  हैं... मैं उन्हें पकड़ने की नाकाम कोशिशें करते- करते थक चुकी हूँ.... अब उलझे हुए सवालों की ठंडी हवाएं जिस्म पे चुभती हुई गुज़रती हैं... और मैं तुम्हारे प्यार की धूप  को तरसती हूँ...





कितनी अजीब बात है ना ...तुम्हारा प्यार उस कड़कड़ाती ठण्ड की धूप की तरह है, जिसमें कुछ देर बैठते ही मीठी नींद आने लगती है... और आँखें बोझिल हो के सपनों में खो जाती हैं... मगर, ज़्यादा देर उसी धूप में रहने से जिस्म जलने लगता है... और वापस आने पे, इस घर की ठंडी दीवारें क़ैदख़ाने सी लगने लगती हैं...





ये धुंद उड़ती हुई तुम्हारी यादें तो मुझ तक ले आती हैं... पर क्या मेरी यादें भी तुम तक आती होंगी? शायद नहीं!

अगर ऐसा होता, तो शायद इस धुंद की ठण्ड मुझे यूँ ग़म का चेहरा न दिखाती बल्कि, मैं मुस्कुरा उठती कि मैं तुम्हे आज भी याद हूँ !





इमेज : foap.com

Life is a withering winter

 When people ask me... do I still remember you? I go in a trance, my lips hold a smile and my eyes are visible with tears about to fall. I r...