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Tuesday, May 29, 2018

घर वापसी (भाग ३ "छुपे आंसूँ ")


भाग ३  "छुपे आंसूँ "





भाग- १ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_99.html 

भाग -२ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_25.html





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"आज भी पैसे बर्बाद करने आये हो?", मैं उसे छेड़ते हुए बोली।





"कुछ पुछूँ तो बताओगी?  उस दिन की तरह मूर्ति तो नहीं हो जाओगी?", कप रखते हुए, वो मेरी नक़ल उतारता हुआ बोला।





देखते
ही मेरा लबों से हँसी फ़ूट पड़ी।  इतना हँसी इतना हँसी कि आँखें आंसुओं से
भर गयी। मेरा हँसना कब रोने में बदल गया, मुझे भी पता न चला।





और कब उसके कंधे पे मेरा सिर और उसकी बाहें मुझसे लिपटी.... नहीं पता।  बस दरवाज़े को बंद करता, इक ज़ोर से धड़ाम की आवाज़ ने  हमे चौंका दिया। और अम्माजी बाहर से चिल्लाती हुुई निकली, "कम- से- कम ई दरवज्जा लगाय लेना था , चिटकनी नहीं का ... "





झट से उससे बाहें छुड़ा, मैं कमरे के दुसरे ओर जा पहुंची।





आज ये शाम  भी न जाने, कब दफ़ा होगी। खीझ सी होने लगी है इस बंद कमरे में।







"मेरा नाम नहीं पूछा तुमने अब तक। सोचा खुद ही बता दूँ। मेरा नाम कैलाश है। तुम्हारा क्या है?" ये बड़ा अजीब तरीका जान- पहचान  का।





" रिद्धिमा। " मैंने झट्ट से बताया।



"रिद्धिमा ? तो वो लड़की तुम्हे अवनि क्यों बुला रही थी?,"  उसने अपना शक ज़ाहिर किया।





"हाँ , रिद्धिमा ही है... अवनि तो.... " मैं कहते कहते चुप हो गयी।



.

"वैसे
तुम्हारा असली नाम अवनि ही है ... हैं न ?" मुझे आज ही तुम्हारा असली नाम
पता लगा, जब तुम मुझे उससे निपटवाने का बोल रही थी। " शायद अब छेड़ने की
बारी उसकी थी।





"वो... अच्छा ... ह्म्म्मं " कुछ सूझ  ही नहीं रहा था कि क्या बोलूँ।  याद कर शर्म सी आ रही थी।





"तुम यहाँ कब से हो? ", वो एकाएक  पूछ बैठा।





"माफ़ करना, अम्माजी ने मना किया है बताने को। ", मैंने उसे वहीं रोक दिया, उसी के सवालों में।





"तो
उस दिन .... उस दिन क्या हो गया था तुम्हे? तुम्हारा पति ... तुम्हारा
बच्चा ... उस दिन क्यों इस अजनबी को बताया था तुमने ? उस दिन किसने पूछा था
तुमसे ? बोलो !!!", वो मेरे पास आ मुझे झिंझोड़ते हुए पूछने लगा।




"तुम्हे
मुझसे क्या?  २ या ३ घंटे के लिए किराए पे मिली हूँ तुम्हे ... तुम्हे
मेरी गुज़री ज़िन्दगी से क्या? बताऊँ  भी, तो क्या कर लोगे तुम ? ३ सालों में
कुछ नहीं कर पायी मैं ... तुम  क्या करलोगे ? ",मैंने उसकी बाहों को खुद
पर से ज़ोर से झटक दिया।





मेरा सब्र गुस्सा बन
के फूट पड़ा।  आँखों के आंसू उसे नहीं दिखाना चाहती थी मैं। ... सो फिर
पाषाण बन खड़ी रही।  आँख खुली तो वो जा चुका था।






 अम्माजी भागी- भागी मेरे कमरे की तरफ आ रही थी, न जाने क्या हुआ आज, कि वो सकपकायी सी लग रही थी। 




"अवनि.... का कहा तूने उस छोरे को? जल्दी निकल लिया वो ... बोला कल फिर आएगा।  अच्छा मुर्गा फांसा री  तूने.... ", उनकी बातों  में पैसे मिलने की ख़ुशी ज़्यादा दिख रही थी।





"मगर मैं नहीं मिलना चाहती उसे दोबारा ... मना कर देना आप।  कह देना मैं भाग गयी यहां से। " मैं खीझ के बोली और अंदर आ के दरवाज़ा बंद कर लिया।









अम्माजी हैरान- परेशान बुलबुल से मामला पता करने चली गयी।







शाम बीत चुकी थी... बारिश भी तेज़ हो गयी...मेरी ज़िन्दगी की बारिश भी तो नहीं रुकी पिछले ३ सालों से...शायद ये ही रुक जाए।





image:www.pexels.com


Life is a withering winter

 When people ask me... do I still remember you? I go in a trance, my lips hold a smile and my eyes are visible with tears about to fall. I r...