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Sunday, May 24, 2015

Patta Patta.......







तरसते  हैं पत्ते ,

शाखों से गिर के ,

ज़मीं पे हवाएँ ,

ऐसे झुलायें।



कभी इस दिशा में ,

कभी उस दिशा में।

झड़ते  है  ऐसे,

पतझड़ हो  जैसे।



कभी आसमानों से.…

बातें थे करते....

सुरमई सी शामें ,

सुनेहरी दोपहरें। …



झड़ते-ऐ-दामन ,

वो पत्तों की टहनी। ....

वो चादर  हरी सी ,

आज सूखी है ऐसे





ज़मीं पर है पत्ता ...

और नज़रें उन्हीं पे।

वो हँसते हैं ऐसे.…

ना आँसू गमी के।



हम रोते हैं अपनी …

 किस्मत  पे आखिर।

जुदाई है ऐसी,…

हमेशा की सर्दी।



वो तरसता पत्ता ,

शाख़ों से गिरकर।

गिरकर ,बिछड़कर ,

है रोता सिकुड़कर।



हवा उसको रोले …

पाँव उसको कुचले …

मगर फिर  भी गाता …

वो  अपंना तराना।



Life is a withering winter

 When people ask me... do I still remember you? I go in a trance, my lips hold a smile and my eyes are visible with tears about to fall. I r...