Thursday, January 21, 2021

एक अक्षर ...


 




सुनो...


किसी दिन,  किसी मोड़ पे शायद तुम्हारा मेरा सामना हो ही गया तो क्या करोगे ? क्या मुझे पहचान पाओगे? या फिर अपनी धुन में चलते  रहोगे। 


कुछ बातों के हज़ार मतलब होते हैं और कुछ  बातों का कोई मतलब नहीं होता। शायद हम इन मतलबों में ही उलझ के जीते रहेंगे। और फिर एक दिन एक दूसरे को  कोसेंगे कि मेरी बात का क्या मतलब निकालते रहे। 

खैर, तुम्हे ये  एहसास ही नहीं कि कितनी दुआएं  मांगी हैं मैंने तुम्हारे इक दीदार के  लिए। 


हिज्र की शब कई जन्मों तक बनी रहे, शायद यही तक़दीर हो. शायद मेरे हाथों में तुम्हारे नाम की लकीर तो हो पर टूटी फूटी।  इसलिए रोज़ हाथदेखती  हूँ... तुम्हारे नाम के अक्षरों को उनमें ढूंढ़ती हूँ।  मगर आज तक एक भी अक्षर नहीं  मिला।  


image: www. pexels.com


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