भाग- १ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_99.html
भाग -२ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_25.html
भाग ३ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_72.html
भाग ४ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_27.html
भाग ५ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/06/blog-post_13.html
भाग ६ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/07/blog-post_5.html
भाग ७ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/10/blog-post.html
भाग ८ यहां पढें https://www.loverhyme.com/2018/11/blog-post.html
भाग ९ यहां पढ़ें https://ravinderscorner.blogspot.com/2019/01/blog-post_25.html
घर वापसी (भाग -१० और...ज़िन्दगी चलती रही )
मैं बीच सड़क चली जा रही थी... सामने से आती हुई कार, बस...मुझे कुछ नज़र नहीं आया।
सब कुछ तो पहले ही लुट चूका था मेरा। वापसी की आस भी अब ख़तम हो चुकी... अब किधर जाऊ ? अम्माजी के यहाँ वापसी का मतलब उन भूखे भेड़ियों का फिर शिकार बन जाऊँ । घर बचा ही कहाँ..... मायेका तो शादी पे ही पराया हो गया और ससुराल.... वो तो अब किसी और के हिस्से चला गया।
"पागल हो क्या!!! मरना चाहती हो ? इतनी बड़ी गाडी नहीं दिखती तुम्हे?" , कैलाश मुझे सड़क किनारे ले जा, झिंझोड़ता हुआ बोला।
"मैं.... मैं.... क्या करू कैलाश। ...मेरा सब कुछ लुट चुका....जिस्म, रूह, घर, पति, बच्चा, सब कुछ!
ज़िन्दगी से कोई उम्मीद नहीं थी मुझे, फिर क्यों निकाल लाये मुझे ? क्यों वापसी के ख्वाब दिखाए?
औरत कभी वापसी नहीं कर सकती... देहलीज़ के उस पार गयी हुई औरत चाहे सीता ही क्यों न हो, वापस कभी घर नहीं जा सकती। मैं तो आम इंसान थी। घर से रूठ के निकली थी .... देखो... मेरी ... मेरी तो किस्मत ही रूठ गयी मुझसे, देखो न..... मैं...मैं क्या करूँ? बोलो ना..... " मुझे रोता देख, कैलाश ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया।
"अवनि.... सुनो, कुछ ख़त्म नही हुआ है, समझी! मेरी तरफ देखो....देखो ! कुछ नहीं हुआ है !!!
तुम तब भी जी रही थी जब अम्माजी के यहां थी... तुम अब भी जियोगी.... वो भी इज़्ज़त से.... मेरे साथ ! "
कैलाश एक एनजीओ में काम करता था। वो मुझे अपने शहर ले गया । वहाँ पहुंच हमने अम्माजी और उनके इस गैरकानूनी काम की पुलिस में एफ़आईआर करवाई। साथ ही अम्माजी से मिले उन भ्रष्ट पुलिसवालों की शिकायत भी की। क्योंकि मानव-तस्करी एक बहुत बड़ा मसला है, उसे सुलझाना इतना आसान नहीं था। पर कैलाश और उसके एनजीओ ने हर मुमकिन कोशिश की कि केस की सुनवाई हाई-कोर्ट में हो।
रेड लाइट एरिया जितना आदमियों को आकर्षित करता है, उतनी ही खौफनाक वहाँ फँसी हुई औरतों और लड़कियों की ज़िंदगी होती है।
कैलाश मुझे तो निकाल लाया.... "मोहब्बत थी ... पाने की हसरत नहीं..." झूठा !
शायद उसी की किस्मत थी...कि मैं उसके साथ हूँ। हम जल्दी ही शादी करने हैं। सब कुछ भुला के।
एक नयी ज़िन्दगी का सफर शुरू होने को है। रब से जितनी भी शिकायतें थी.... अब नहीं हैं!
image:www.usgo.org