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Wednesday, February 14, 2018

किताब में दिल ...


















किताबों में गुलाब कई बार मिलने की बातें होती हैं.... पर क्या कभी किसी का दिल भी किताब में मिला है???



मुझे मिला है... कभी धड़कन की आवाज़ आयी, तो कभी साँसों की खुशबू... प्यार की गिरफ्त होती ही ऐसी है... ऐसी लिपटती है, कि जान बन जाती है... 



क्या कभी जान भी रूठती है???



सांसें बेज़ार हो जाएँ, तो धड़कनें उन गिरवी सोने के बुंदों (झुमकों) की तरह हो जाती हैं... जिन्हें ना पहन सकते हैं और न ही, पैसे चुकाने तक नींद आती है।



मेरा भी कुछ,ऐसा ही हाल रहा... जब तक दिल को तसल्ली नहीं हुई, कि जो दिल में आ चुका, वो ज़िन्दगी भर का हमसफ़र - हमराही ही होगा, मैं भी बेचैन और डरी हुई सी रही।



उस किताब का ज़िक्र कर रही हूँ... जो मेरी ज़िन्दगी की, तस्वीर सी बन चुकी है... लाइब्रेरी में मिलते थे छुप के... इक किताब में सवाल पूछते थे... और जवाब जिसका दूसरी किताब में होता था...



एक पर्ची पे सवाल का पेज नंबर और किताब का नाम लिख के, एक दूसरे को दे देते थे क्लास के बाद... और जवाब की पर्ची ,अगले दिन... किसी और किताब में।  





आखिर ये सिलसिला तब टूटा, जब लाइब्रेरियन के हाथ इक किताब लगी, जिसमें गलती से सवाल की पर्ची रह गयी थी।  और हम दोनों अपने मोहब्बत के सवाल-जवाब के खेल में, एक रेफ़री से मिलने पहुंच गए।



माँ थी भी बड़ी स्ट्रिक्ट... ऊपर से लाइब्रेरियन भी थी!



मेरी ज़िन्दगी के कार्ड पे उसके नाम की एंट्री हो गयी और हम एक बंधन में गए...



किताब जिसने हमे फंसाया था, आज हमारी शादी के कार्ड को बाहों में भरी रहती है....



अब कहो.... किताब में दिल मिला कि नहीं ???










इमेज:pixabay.com 






Life is a withering winter

 When people ask me... do I still remember you? I go in a trance, my lips hold a smile and my eyes are visible with tears about to fall. I r...