Thursday, May 28, 2015

Ik Ghutan si.....










इक घुटन सी,

आँसुओं में  है टपकती।



हर बूँद खुद को जला,

पिघलती  और सुलगती।



आँखों ही आँखों में ,

कुछ वो कहती और रोती।



मगर खुद के ग़म में ,

रहती वो सिसकती और पिघलती।



जली जा रही है ,

रोती , सुबकती।



शाम ढलते ही ,

आवाज़ आए कहीं से।



जला दो ये (मोम )बत्ती ,

 अँधेरा बड़ा है।



जल जल के करती ,

गम ये पार करने।



कि दरिया भी मैं हूँ

किनारा भी मैं हूँ।



और ये बिचारी ,

कश्ती भी मैं हूँ।















































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