Sunday, July 14, 2019

What if I never get over you...






What if I never get over you...























Love is as confusing as hating.... both consume enormous energy . The only thing that differs is the way we express them.


After believing for a lifetime that a person can get over someone by hating, I understood that it's never possible. 


Even though we move on... we move away from that love, we want to forget, we want never to go through the same again...


But ... that person still holds the very spot in our heart, eventhough we ignore... looking through them like they dont exist but the truth is, love cannot be taken back... you cannot unlove them. Hating them is just a mask we put over our own emotions. A mechanism to cope up, to prevent from drowning in that sad wave that we are not with them...


What if I dont get closure?


There are no closures in love, only divorces in marriages but never closures. There is nothing called closures because we never agree on loving someone for a while... hearts dont work that way. 


What if I never get over you?


I would never, but plainly deny my feelings for you, fight out with myself....thinking it's all in my head and not in real. 


But the truth will remain the same... there's no way to unlove a person you once fell in love with.  There will be memories that won't leave at your will. Mind is a graveyard where memories are like ghosts, haunting day and night, without any restrictions and last goodbyes never mean you will forget them once and for all.





©Ravinder Kaur


14-07-2019


#whatifinevergetoveryou


#whatifinevergetclosure


#memorieshauntingraveyardofmind


#youcantunlovetheoneyouloved


#you

















Tuesday, June 18, 2019

That night...



























That night when you appeared; broken!


Torn at the window of my room,





The melody you played; weeped.


On the strings of the harp.





That night when I touched,


Your heart that oozed blood.





That night, when you hugged me tight,


Hiding away your tears; unripe.





As you teach me each night,


To play the strings of harp right.





The only melody you taught me,


Was of broken hearts and lives.





That night when you sung,


For your beloved outside.





Looking at the stars you recited her name,


Like an unfulfilled wish to the stars.





As you wrapped your wings around yourself,


Embracing her as if a dream stands in eyes.





I wished you had loved me the same


As you thought of your Aphrodite.





But I knew I cannot love an angel


A forbidden thing it is to the mankind





But I have fallen for you it seems...


A broken shattered heart; You.





Now I look at the harp untouched,


May be you have forgotten about Us.





I play the saddest melody,


Holding my tears for eternity.





Trembled my heart as it felt your brokenness,


Like it shattered in me; inside.





What is love if not felt inside,


Without a touch of light.





My darkened soul lit up,


Like a spark burning the whole forest.





And the trapped love that you evoked,


Now escapes to the world; untold.





And I wonder if it was love...


Or a curse foretold.











































Monday, January 28, 2019

घर वापसी (भाग -१० और...ज़िन्दगी चलती रही )




भाग- १ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_99.html 

भाग -२ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_25.html

भाग ३ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_72.html

भाग ४ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_27.html

भाग ५ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/06/blog-post_13.html

भाग ६ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/07/blog-post_5.html

भाग ७ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/10/blog-post.html

भाग ८ यहां पढें https://www.loverhyme.com/2018/11/blog-post.html

भाग ९ यहां पढ़ें  https://ravinderscorner.blogspot.com/2019/01/blog-post_25.html









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घर वापसी (भाग -१०  और...ज़िन्दगी चलती रही )







मैं बीच सड़क चली जा रही थी... सामने से आती हुई कार, बस...मुझे कुछ नज़र नहीं आया।

सब कुछ तो पहले ही लुट चूका था मेरा। वापसी की आस भी अब ख़तम हो चुकी... अब किधर जाऊ ? अम्माजी के यहाँ वापसी का मतलब उन भूखे भेड़ियों का फिर शिकार बन जाऊँ ।  घर बचा ही कहाँ..... मायेका तो शादी पे ही पराया हो गया और ससुराल.... वो तो अब किसी और के हिस्से चला गया।



"पागल हो क्या!!! मरना चाहती हो ? इतनी बड़ी गाडी नहीं दिखती तुम्हे?" , कैलाश मुझे सड़क किनारे ले जा, झिंझोड़ता हुआ बोला।





"मैं.... मैं.... क्या करू कैलाश। ...मेरा सब कुछ लुट चुका....जिस्म, रूह, घर, पति, बच्चा, सब कुछ!

ज़िन्दगी से कोई उम्मीद नहीं थी मुझे, फिर क्यों निकाल लाये मुझे ? क्यों वापसी के ख्वाब दिखाए?

औरत कभी वापसी नहीं कर सकती... देहलीज़ के उस पार गयी हुई औरत चाहे सीता ही क्यों न हो, वापस कभी घर नहीं जा सकती।  मैं तो आम इंसान थी। घर से रूठ के निकली थी  .... देखो... मेरी ... मेरी तो किस्मत ही रूठ गयी मुझसे, देखो न..... मैं...मैं क्या करूँ? बोलो ना..... " मुझे रोता देख, कैलाश ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया।







"अवनि.... सुनो, कुछ ख़त्म नही हुआ है, समझी! मेरी तरफ देखो....देखो ! कुछ नहीं हुआ है !!! 

तुम तब भी जी रही थी जब अम्माजी के यहां थी... तुम अब भी जियोगी.... वो भी इज़्ज़त से.... मेरे साथ ! "











कैलाश एक एनजीओ  में काम करता था।  वो मुझे अपने शहर ले गया ।  वहाँ पहुंच हमने अम्माजी और उनके इस गैरकानूनी काम की पुलिस में एफ़आईआर  करवाई।  साथ ही अम्माजी से मिले उन भ्रष्ट पुलिसवालों की शिकायत भी की।  क्योंकि मानव-तस्करी एक बहुत बड़ा मसला है, उसे सुलझाना इतना आसान नहीं था।  पर कैलाश और उसके एनजीओ ने हर मुमकिन कोशिश की कि केस की सुनवाई हाई-कोर्ट में हो।







रेड लाइट एरिया जितना आदमियों को आकर्षित करता है, उतनी ही खौफनाक वहाँ फँसी हुई औरतों और लड़कियों की ज़िंदगी होती है।







कैलाश मुझे तो निकाल लाया.... "मोहब्बत थी ... पाने की हसरत नहीं..." झूठा ! 



 शायद उसी की किस्मत थी...कि मैं उसके साथ हूँ।  हम जल्दी ही शादी करने हैं।  सब कुछ भुला के।



एक नयी ज़िन्दगी का सफर शुरू होने को है।  रब से जितनी भी शिकायतें थी.... अब नहीं हैं!









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Friday, January 25, 2019

घर-वापसी (भाग - ९ औरत या खिलौना ?)


भाग- १ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_99.html 

भाग -२ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_25.html

भाग ३ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_72.html

भाग ४ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_27.html

भाग ५ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/06/blog-post_13.html

भाग ६ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/07/blog-post_5.html

भाग ७ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/10/blog-post.html

भाग ८ यहां पढें https://www.loverhyme.com/2018/11/blog-post.html








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घर-वापसी  (भाग - ९ औरत या खिलौना ?)





















घर आज भी वैसा ही लग रह बाहर से.... जैसा ३ साल पहले था ...







गेट  के अंदर वक़्त जैसे उस खुशनुमा मौसम को रोके रखे हुए था , मेरे लगाए हुए गुलाब खिल चुके थे।  उगी हुई घास वैसी ही हरी, जैसी की मेरे वहाँ रहने पर थी....







आँगन में झूला हवा के साथ हिल रहा था, मेरा बेटा अब भी उसी में झूलता होगा। गेट के दाहिने ओर पट्टी पे लिखा इनका नाम जैसे मुझे ही पुकार रहा है। मैं गेट पे खड़ी उन तमाम यादों को याद कर..... पूरा घर बाहर से देख, आंसुओं से भीग चुकी हूँ.









कैलाश मुझे कुछ कह रहा है पर, पर मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा.... मैं तो जैसे ३ साल पुरानी मेरे ज़ेहन में बसी मेरे घर की तस्वीर को फिर से रंग रही थी.... मैं तो मेरे आंसुओं की बारिश से धूल पड़ी उन यादों को धो उस इंद्रधनुष को सजा रही हूँ, जो आज मेरे आने पे यहां बनेगा।









"अंदर नहीं जाओगी क्या?", कैलाश मुझे अनायास ही पूछ बैठा।







 "हाँ... मगर आज ना , बड़ा अजीब लग रहा है.... अपना ही घर।  सुनो ... शुक्रिया मुझे घर पहुुँचाने के लिए।  तुम सच में नेक  बन्दे हो, तुमने मुझे बचा लिया। .... सारी उम्र ये क़र्ज़ रहेगा मुझपे तुम्हारा। " मैं रोते हुए बोली।







"जाओ भी ... ", वह अपना दर्द होता सर पकड़ता हुआ बोला। मुझे अपनी तरफ बढ़ते देख, वह पलट के चलता बना।  मुस्कुराते हुए मैं गेट की तरफ बढ़ी ही थी कि, अंदर से पुनीत भागता हुआ घर के बरामदे में आ पहुंचा, पीछे-पीछे रत्नेश भी आते हुए दिखे। उन्हें देख मेरा दिल ख़ुशी से मानो धड़कना ही बंद कर देगा। मेरा बेटा ...मेरा पति!








मगर......







उनके पीछे आती हुई उस सुन्दर औरत को देख मेरे पैर, एकाएक रुक गए। उसकी मांग का सिन्दूर और गले का मंगलसूत्र न जाने क्यों मेरे दिल को नोचता सा लगा । मेरे लिए वक़्त थम सा गया।  शायद किस्मत फिर इक बार मुझे धोखा दे गयी।  







मुझे गेट पर देख, रत्नेश भी कुछ देर ठिठक कर देखते रहे।फिर एकाएक वो मेरी तरफ तेज़ी से बढ़े। गेट अंदर वह औरत और पुनीत घर के अंदर जाते हुए दिखे।







रत्नेश गेट खोल बाहर आ चुके थे। उनके चेहरे पे मुझसे मिलने की जितनी ख़ुशी थी, उससे कुछ ज़्यादा एक अजीब सा डर साफ़ नज़र आ रहा था। मेरे पास पहुचते ही उन्होंने मेरे हाथ अपने हाथों में ले लिए।







" कहाँ थी तुम ??? कोई इस तरह रूठ के जाता है क्या ? जानती हो....कितना ढूंढा तुम्हे, पागल कर दिया था मुझे, तुमने यार ! जानती हो पुनीत की क्या हालत थी !", वो बोले ही जा रहे थे।







"तभी तुमने उसे नयी माँ ला दी ?", मैंने उन्हें बीच में काटते हुए कहा।





"अच्छा ही किया ... शायद मैं कभी लौटती ही नहीं, तो वो अनाथ हो जाता।", मैं आंसू पोछते हुए बोली।







"अवनि , मेरी बात तो सुनो,  जानती हो , मैंने तुम्हारे बिना कैसे ये ३ साल गुज़ारे।  तुम.... तुम फ़िक्र मत करो,  अब जो तुम वापस आ चुकी हो, मैं.... मैं उसे तलाक़ दे दूंगा। " रत्नेश के माथे की शिकन उनके अंदर के डर को बखूबी बयां कर रही थी। मुझे तलाक़ दिए बिना या मेरे मरने के पुख्ता न होने पर, उन्हें जेल की सजा जो हो सकती थी। वह मुझे तलाक़ का भरोसा दिलाने लगे।







" रत्नेश!!! औरत कोई खिलौना नहीं कि जब दिल भर गया तो उठा के फ़ेंक दिया ! वो औरत अब तुम्हारी पत्नी , तुम्हारी जीवन-संगिनी है।हमारे बेटे के खाली मन को उसने, मेरी यादों की जगह, खुद के दुलार से भर दिया।

अब मेरी यहां कोई जगह नहीं !" मैंने अपने हाथ रत्नेश के हाथों से खींच लिए।









" अवनि तो ३ साल पहले ही मर चुकी ! मैं तो उसकी लाश भर हूँ। और मरे हुओं को सिर्फ यादों में रखा जाता है.... ज़िंदा लोगों के बीच नहीं। मेरी हकीकत जानने के बाद कि, मैं इन सालों में कहाँ थी, क्या क्या हुआ मेरे साथ.... शायद तुम और तुम्हारा ये समाज मुझे यहां बर्दाश्त नहीं कर पायेगा। इसीलिए मेरा , अवनि रत्नेश मेहरा का मरा हुआ ही रहना ठीक रहेगा। मेरा तर्पण तो वैसे भी तुम कर ही चुके होंगे... अब मेरा लौटना बेमायने होगा !", दिल पत्थर कर, मैंने सब कह दिया।









"अवनि, रुक जाओ प्लीज़..... !" रत्नेश रो रहे थे।









सड़क की दूसरी तरफ खड़ा कैलाश हमें हैरान नज़रों से देखे जा रहा था।  मैं उसकी तरफ बिना देखे चल पड़ी।








मेरी घर-वापसी की हर उम्मीद अब ख़त्म हो चुकी थी .......















इमेज : www.losangelesgatecompany.com

Wednesday, December 12, 2018

Locks of Winter











Locks of winter fall on ground


She has a hairfall all around.


The bits of ice


Quietly disguised


Fall on ground


Fall...fall...all around.





The hair has turned grey...


With white mist mixed clay...


The cold waves carrying around...


Her white hair falling all around.


Locks of winter 


Shining in moonlight


She has let open her hair...


To fall down back...on ground.





She flaunts...


Plays...


Rhythmically


Throughout the night.


She wears a gown of fog...


With slippers of glass that hold...


Her feet dancing on the ground...


Her ashes of white all around...





When light is low


And no birds show


Her heartbeats reverberate.


In the quiet spaces


Where darkness creeps


And shadows sleep.


Before the day begins,


She rises in air


Leaving frozen breaths as dew


At dawn over the leaves .





The sunlight dim


Fears to face


The gaze of the mighty chill


The winter as a Queen


Has a hairfall it seems


But the more they fall,


The more she grows


Gracious winter 


Has lovely white hair.








(C) Ravinder Kaur 


     12-12-2018





Image: www.tabbyspantry.com





Friday, December 7, 2018

Stagnant...











When colours fade away...


Like the sound of a horse's gallop...


Distant... invisible... inaudible.


I hear you still


Inside my heart


As my own heartbeat.


But you want to leave...


Like the breath that leaves


My heart and vanishes in thin air.


And so I open up my hands


To let your fingers slip away...




Stagnant water I am...

And you a ship. 





And...


I cannot be your harbour.



(C) Ravinder Kaur 





Image:www.theodysseyonline.com











Monday, November 19, 2018

घर-वापसी (भाग ८- 'सफर का आगाज़")


भाग- १ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_99.html 

भाग -२ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_25.html

भाग ३ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_72.html

भाग ४ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_27.html

भाग ५ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/06/blog-post_13.html

भाग ६ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/07/blog-post_5.html

भाग ७ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/10/blog-post.html









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रात को किसी के कराहने की आवाज़ आ रही थी.... शायद कोई चोर होगा। मगर उस दर्द भरी आवाज़ को कहीं सुना है... ऐसा लग रहा था।  थोड़ी देर बाद बिजली गुल हो चुकी थी और कमरे मे घना अँधेरा पसरने लगा।





 "अवनि ... दरवाज़ा खोलो...." कैलाश की आवाज़ बाहर से आ रही थी। वीणा गहरी नींद में थी।  दरवाज़ा खोलते ही खून में लथपथ कैलाश को देख मैं डर सी गयी थी।





"हमे अभी जाना होगा... चलो ! मैं पुलिस के पास गया था.... मगर वो अम्माजी से मिली हुई है.... उन्होंने शायद अम्माजी को खबर भी कर दी हो। अगर जान बचानी है तो अभी चलो ...." कैलाश बिना रुके बोला।





"मैंने कहा था न ... इस दल-दल से निकलना आसान नहीं। ... अब क्या होगा !!! तुम जाओ यहां से, अपनी जान बचाओ .... मैं,  मैं देखलूँगी जो होगा, तुम जाओ... हाथ जोड़ती हूँ तुम्हारे , जाओ!!!" मैं रोते हुए बोली।





"पागल मत बनो.... ये पिटाई क्या मैंने इसी लिए खायी है ... अब चलो भी!" वो मेरा हाथ पकड़ बोला।








अब  जो भी हो, मुझे जाना है.... फैसला हो चुका ... मौत या रिहाई... 





छुपते- छुपाते हम निकल ही आये.... न जाने आज इस क़ैदगाह के दरवाज़े  कैसे खुले रह गए। ... या फिर मैं ही उड़ना भूल चुकी थी? मगर डर अभी भी कहीं सर उठा रहा था  और मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या होगा।







कैलाश पे भरोसा कर के कहीं मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी ? पर अब निकल ही पड़ी हूँ जान हथेली पे लिए, तो मौत से क्या डरना।  मरना तो है ही एक दिन ... चलो आज ही सही !







उजाला हो चुका था और उसके सर से बहते खून को देख  मुझे दुःख होने लगा , आखिर मेरे ही कारण उसका ये हाल जो हुआ था।







हम वह शहर पीछे छोड़ आये थे... मेरे ज़िद्द करने पे उसने आखिर एक जगह रुक कर पट्टी करवाई. डॉक्टर ने ज़ख्म गहरा देख एडमिट होने की हिदायत दी, पर वो कहाँ सुनने वाला था किसी की। वो तो मुझे मेरी मंज़िल तक पहुुँचाना चाहता था। ... सिरफिरा इंसान !







क़रीब ६ घंटे का सफर कर चुकने के बाद भी हम अपनी मंज़िल से कोसो दूर थे ... बीच में बस खाने के लिए रुके होंगे कि पता चला कि अम्माजी ने पुलिसवालों  को हमारे पीछे लगा दिया था, पर तब तक हम स्टेट - बॉर्डर पार चुके थे।दिल को कुछ राहत मिली।









मेरा घर अब बहुत नज़दीक था अब... बस २ घंटे और.... धड़कन जैसे गाडी की  स्पीड के साथ दौड़ लगा रही हो। मैं मुस्कुराने लगी और कैलाश भी। उसकी आँखें मेरे चेहरे को नज़र-अंदाज़ नहीं करती दिख़ रही थी।







कभी कभी सब खो कर इंसान पाने की एहमियत समझता है ... मैं ३ साल से उस कोठरी में घर-वापसी की उम्मीद खो चुकी थी।  आज अपनी रिहाई ... अपने घर को वापसी पा कर मैं खुश हो रही थी।









 रब सबको हिफाज़त से रखे... सबको शैतानों से बचा के रखे !!!






इमेज:www.shutterstock.com









 













































                                                                                                                                             

Life is a withering winter

 When people ask me... do I still remember you? I go in a trance, my lips hold a smile and my eyes are visible with tears about to fall. I r...