Friday, January 25, 2019

घर-वापसी (भाग - ९ औरत या खिलौना ?)


भाग- १ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_99.html 

भाग -२ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_25.html

भाग ३ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_72.html

भाग ४ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_27.html

भाग ५ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/06/blog-post_13.html

भाग ६ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/07/blog-post_5.html

भाग ७ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/10/blog-post.html

भाग ८ यहां पढें https://www.loverhyme.com/2018/11/blog-post.html








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घर-वापसी  (भाग - ९ औरत या खिलौना ?)





















घर आज भी वैसा ही लग रह बाहर से.... जैसा ३ साल पहले था ...







गेट  के अंदर वक़्त जैसे उस खुशनुमा मौसम को रोके रखे हुए था , मेरे लगाए हुए गुलाब खिल चुके थे।  उगी हुई घास वैसी ही हरी, जैसी की मेरे वहाँ रहने पर थी....







आँगन में झूला हवा के साथ हिल रहा था, मेरा बेटा अब भी उसी में झूलता होगा। गेट के दाहिने ओर पट्टी पे लिखा इनका नाम जैसे मुझे ही पुकार रहा है। मैं गेट पे खड़ी उन तमाम यादों को याद कर..... पूरा घर बाहर से देख, आंसुओं से भीग चुकी हूँ.









कैलाश मुझे कुछ कह रहा है पर, पर मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा.... मैं तो जैसे ३ साल पुरानी मेरे ज़ेहन में बसी मेरे घर की तस्वीर को फिर से रंग रही थी.... मैं तो मेरे आंसुओं की बारिश से धूल पड़ी उन यादों को धो उस इंद्रधनुष को सजा रही हूँ, जो आज मेरे आने पे यहां बनेगा।









"अंदर नहीं जाओगी क्या?", कैलाश मुझे अनायास ही पूछ बैठा।







 "हाँ... मगर आज ना , बड़ा अजीब लग रहा है.... अपना ही घर।  सुनो ... शुक्रिया मुझे घर पहुुँचाने के लिए।  तुम सच में नेक  बन्दे हो, तुमने मुझे बचा लिया। .... सारी उम्र ये क़र्ज़ रहेगा मुझपे तुम्हारा। " मैं रोते हुए बोली।







"जाओ भी ... ", वह अपना दर्द होता सर पकड़ता हुआ बोला। मुझे अपनी तरफ बढ़ते देख, वह पलट के चलता बना।  मुस्कुराते हुए मैं गेट की तरफ बढ़ी ही थी कि, अंदर से पुनीत भागता हुआ घर के बरामदे में आ पहुंचा, पीछे-पीछे रत्नेश भी आते हुए दिखे। उन्हें देख मेरा दिल ख़ुशी से मानो धड़कना ही बंद कर देगा। मेरा बेटा ...मेरा पति!








मगर......







उनके पीछे आती हुई उस सुन्दर औरत को देख मेरे पैर, एकाएक रुक गए। उसकी मांग का सिन्दूर और गले का मंगलसूत्र न जाने क्यों मेरे दिल को नोचता सा लगा । मेरे लिए वक़्त थम सा गया।  शायद किस्मत फिर इक बार मुझे धोखा दे गयी।  







मुझे गेट पर देख, रत्नेश भी कुछ देर ठिठक कर देखते रहे।फिर एकाएक वो मेरी तरफ तेज़ी से बढ़े। गेट अंदर वह औरत और पुनीत घर के अंदर जाते हुए दिखे।







रत्नेश गेट खोल बाहर आ चुके थे। उनके चेहरे पे मुझसे मिलने की जितनी ख़ुशी थी, उससे कुछ ज़्यादा एक अजीब सा डर साफ़ नज़र आ रहा था। मेरे पास पहुचते ही उन्होंने मेरे हाथ अपने हाथों में ले लिए।







" कहाँ थी तुम ??? कोई इस तरह रूठ के जाता है क्या ? जानती हो....कितना ढूंढा तुम्हे, पागल कर दिया था मुझे, तुमने यार ! जानती हो पुनीत की क्या हालत थी !", वो बोले ही जा रहे थे।







"तभी तुमने उसे नयी माँ ला दी ?", मैंने उन्हें बीच में काटते हुए कहा।





"अच्छा ही किया ... शायद मैं कभी लौटती ही नहीं, तो वो अनाथ हो जाता।", मैं आंसू पोछते हुए बोली।







"अवनि , मेरी बात तो सुनो,  जानती हो , मैंने तुम्हारे बिना कैसे ये ३ साल गुज़ारे।  तुम.... तुम फ़िक्र मत करो,  अब जो तुम वापस आ चुकी हो, मैं.... मैं उसे तलाक़ दे दूंगा। " रत्नेश के माथे की शिकन उनके अंदर के डर को बखूबी बयां कर रही थी। मुझे तलाक़ दिए बिना या मेरे मरने के पुख्ता न होने पर, उन्हें जेल की सजा जो हो सकती थी। वह मुझे तलाक़ का भरोसा दिलाने लगे।







" रत्नेश!!! औरत कोई खिलौना नहीं कि जब दिल भर गया तो उठा के फ़ेंक दिया ! वो औरत अब तुम्हारी पत्नी , तुम्हारी जीवन-संगिनी है।हमारे बेटे के खाली मन को उसने, मेरी यादों की जगह, खुद के दुलार से भर दिया।

अब मेरी यहां कोई जगह नहीं !" मैंने अपने हाथ रत्नेश के हाथों से खींच लिए।









" अवनि तो ३ साल पहले ही मर चुकी ! मैं तो उसकी लाश भर हूँ। और मरे हुओं को सिर्फ यादों में रखा जाता है.... ज़िंदा लोगों के बीच नहीं। मेरी हकीकत जानने के बाद कि, मैं इन सालों में कहाँ थी, क्या क्या हुआ मेरे साथ.... शायद तुम और तुम्हारा ये समाज मुझे यहां बर्दाश्त नहीं कर पायेगा। इसीलिए मेरा , अवनि रत्नेश मेहरा का मरा हुआ ही रहना ठीक रहेगा। मेरा तर्पण तो वैसे भी तुम कर ही चुके होंगे... अब मेरा लौटना बेमायने होगा !", दिल पत्थर कर, मैंने सब कह दिया।









"अवनि, रुक जाओ प्लीज़..... !" रत्नेश रो रहे थे।









सड़क की दूसरी तरफ खड़ा कैलाश हमें हैरान नज़रों से देखे जा रहा था।  मैं उसकी तरफ बिना देखे चल पड़ी।








मेरी घर-वापसी की हर उम्मीद अब ख़त्म हो चुकी थी .......















इमेज : www.losangelesgatecompany.com

Wednesday, December 12, 2018

Locks of Winter











Locks of winter fall on ground


She has a hairfall all around.


The bits of ice


Quietly disguised


Fall on ground


Fall...fall...all around.





The hair has turned grey...


With white mist mixed clay...


The cold waves carrying around...


Her white hair falling all around.


Locks of winter 


Shining in moonlight


She has let open her hair...


To fall down back...on ground.





She flaunts...


Plays...


Rhythmically


Throughout the night.


She wears a gown of fog...


With slippers of glass that hold...


Her feet dancing on the ground...


Her ashes of white all around...





When light is low


And no birds show


Her heartbeats reverberate.


In the quiet spaces


Where darkness creeps


And shadows sleep.


Before the day begins,


She rises in air


Leaving frozen breaths as dew


At dawn over the leaves .





The sunlight dim


Fears to face


The gaze of the mighty chill


The winter as a Queen


Has a hairfall it seems


But the more they fall,


The more she grows


Gracious winter 


Has lovely white hair.








(C) Ravinder Kaur 


     12-12-2018





Image: www.tabbyspantry.com





Friday, December 7, 2018

Stagnant...











When colours fade away...


Like the sound of a horse's gallop...


Distant... invisible... inaudible.


I hear you still


Inside my heart


As my own heartbeat.


But you want to leave...


Like the breath that leaves


My heart and vanishes in thin air.


And so I open up my hands


To let your fingers slip away...




Stagnant water I am...

And you a ship. 





And...


I cannot be your harbour.



(C) Ravinder Kaur 





Image:www.theodysseyonline.com











Monday, November 19, 2018

घर-वापसी (भाग ८- 'सफर का आगाज़")


भाग- १ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_99.html 

भाग -२ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_25.html

भाग ३ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_72.html

भाग ४ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_27.html

भाग ५ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/06/blog-post_13.html

भाग ६ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/07/blog-post_5.html

भाग ७ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/10/blog-post.html









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रात को किसी के कराहने की आवाज़ आ रही थी.... शायद कोई चोर होगा। मगर उस दर्द भरी आवाज़ को कहीं सुना है... ऐसा लग रहा था।  थोड़ी देर बाद बिजली गुल हो चुकी थी और कमरे मे घना अँधेरा पसरने लगा।





 "अवनि ... दरवाज़ा खोलो...." कैलाश की आवाज़ बाहर से आ रही थी। वीणा गहरी नींद में थी।  दरवाज़ा खोलते ही खून में लथपथ कैलाश को देख मैं डर सी गयी थी।





"हमे अभी जाना होगा... चलो ! मैं पुलिस के पास गया था.... मगर वो अम्माजी से मिली हुई है.... उन्होंने शायद अम्माजी को खबर भी कर दी हो। अगर जान बचानी है तो अभी चलो ...." कैलाश बिना रुके बोला।





"मैंने कहा था न ... इस दल-दल से निकलना आसान नहीं। ... अब क्या होगा !!! तुम जाओ यहां से, अपनी जान बचाओ .... मैं,  मैं देखलूँगी जो होगा, तुम जाओ... हाथ जोड़ती हूँ तुम्हारे , जाओ!!!" मैं रोते हुए बोली।





"पागल मत बनो.... ये पिटाई क्या मैंने इसी लिए खायी है ... अब चलो भी!" वो मेरा हाथ पकड़ बोला।








अब  जो भी हो, मुझे जाना है.... फैसला हो चुका ... मौत या रिहाई... 





छुपते- छुपाते हम निकल ही आये.... न जाने आज इस क़ैदगाह के दरवाज़े  कैसे खुले रह गए। ... या फिर मैं ही उड़ना भूल चुकी थी? मगर डर अभी भी कहीं सर उठा रहा था  और मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या होगा।







कैलाश पे भरोसा कर के कहीं मैंने कोई गलती तो नहीं कर दी ? पर अब निकल ही पड़ी हूँ जान हथेली पे लिए, तो मौत से क्या डरना।  मरना तो है ही एक दिन ... चलो आज ही सही !







उजाला हो चुका था और उसके सर से बहते खून को देख  मुझे दुःख होने लगा , आखिर मेरे ही कारण उसका ये हाल जो हुआ था।







हम वह शहर पीछे छोड़ आये थे... मेरे ज़िद्द करने पे उसने आखिर एक जगह रुक कर पट्टी करवाई. डॉक्टर ने ज़ख्म गहरा देख एडमिट होने की हिदायत दी, पर वो कहाँ सुनने वाला था किसी की। वो तो मुझे मेरी मंज़िल तक पहुुँचाना चाहता था। ... सिरफिरा इंसान !







क़रीब ६ घंटे का सफर कर चुकने के बाद भी हम अपनी मंज़िल से कोसो दूर थे ... बीच में बस खाने के लिए रुके होंगे कि पता चला कि अम्माजी ने पुलिसवालों  को हमारे पीछे लगा दिया था, पर तब तक हम स्टेट - बॉर्डर पार चुके थे।दिल को कुछ राहत मिली।









मेरा घर अब बहुत नज़दीक था अब... बस २ घंटे और.... धड़कन जैसे गाडी की  स्पीड के साथ दौड़ लगा रही हो। मैं मुस्कुराने लगी और कैलाश भी। उसकी आँखें मेरे चेहरे को नज़र-अंदाज़ नहीं करती दिख़ रही थी।







कभी कभी सब खो कर इंसान पाने की एहमियत समझता है ... मैं ३ साल से उस कोठरी में घर-वापसी की उम्मीद खो चुकी थी।  आज अपनी रिहाई ... अपने घर को वापसी पा कर मैं खुश हो रही थी।









 रब सबको हिफाज़त से रखे... सबको शैतानों से बचा के रखे !!!






इमेज:www.shutterstock.com









 













































                                                                                                                                             

Thursday, October 18, 2018

Between you and me...























Your name truly suits you "Assumptions" and mine "Conclusions". But you know without you I cannot be reached to and without me you are incomplete. So please stop assuming me and I would want to stop concluding you for what is there in between is yet to be lived, experienced and resolved.







Your value will always be variable but mine always constant but with you. You may call me stubborn and not wanting to change but your changes are highly irritating. But you know dear, if you change I shall have to change too. May be that is what you always wish for... to change me.





But there is something missing and that's what it is all about.The journey in between; the heart beating between two breaths, raindrops between the clouds and the ground.


Something that ought to be there but is not.The absent feelings ...the unknown derivation.


The dark...the truth.The story...the whole.


And not just the start and the end.





So stop loving me because my value changes in any case. And I become a variable and you obnoxiously a constantly terrifying catalyst to me. 





image:www.mirrorofmysoul.com



Saturday, October 13, 2018

Flowers on my grave...











Tell me how would you remember...


My giggles on swing rising high?


Tell me will you remember...


Those moments in the dark?


Twisted tongues and riddles...


Stutters and meaningless scribbles!





Tell me will you remember...


Those evening walks ending at nights,


Morning sun bathing out coldnight faces,


Tell me how will you remember my meaningless smiles?





On breakfast table your coffee going cold, 


My hot tea in your hand; kissing your lips for a while,


Will you remember those surprise visits intruding my dreams of you...


When sun bit the last slice of the noon bright?





When nights shun away the lights,


Tell me when will you sleep?


And not hide your face under the pillow;


When will you stop sharing those tears with the night skies?





When will you stop reminiscing?


When will you accept am gone far off sight?


Tell me when will you forget...


To weep and place your hands over me?





On this grave of mine...


Just walk past, don't look back!


Let this be the last flower,


On my grave in this lifetime!













Image : www.realclear.com

              www.hiveminer.com




Tuesday, October 2, 2018

घर वापसी (भाग ७ -"ये कैसी मोहब्बत है?")



घर वापसी, भाग ७ -ये कैसी मोहब्बत है









भाग- १ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_99.html 

भाग -२ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_25.html

भाग ३ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_72.html

भाग ४ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_27.html

भाग ५ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/06/blog-post_13.html

भाग ६ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/07/blog-post_5.html





















नल
के नीचे लगा घड़ा भर के छलक गया था... मेरे ध्यान न देने पर सब मेरा और
कैलाश का मज़ाक उड़ाने लगे। मैं झल्लाते हुए घड़ा उठाने को आगे हुई ही थी, कि
दो हाथों ने घड़ा बीच में ही अपनी तरफ खींच लिया। मेरे देखने से पहले ही
वीना और बुलबुल ज़ोर ज़ोर से हँसने लगीं ।





"लो! ... अब
ये ही बाकी रह गया था। ... जाओ दीदी चाय बना लाओ... कहो तो हम ही बना दें ,
तुम्हे तकल्लुफ  न हो तो...  " दोनों मुझे चिढ़ा रही थीं।








हाँ
इस आदमी ने तो मुझे यही खरीद रखा है, पता नहीं अम्मा जी को कितने हरे पत्ते
बाँट आता है कि वो इसे इस तरह यहाँ आने देती ... हाथ भींचते हुए, मेरा गुस्सा
सातवे आसमान पे चढ़ गया, मानो किसी के क़त्ल करने से कम अब मुमकिन ही नहीं
मेरे लिए।दिमाग अपने ही जाल बुनने में मगन था।







 क्या पता बेवक़ूफ़ ही बना रहा हो मुझे ये सब कहके कि मुझे यहां से निकाल लेगा।





मगर 
इसे मुझसे क्या फ़ायदा ??? सोच-सोच के दिल परेशान हो रहा था ... मुझे हाथ
भी नहीं लगाया आज तक ... मैं तो कोई पैसे- वाली भी नहीं। फिर क्या फ़ायदा
इसका मुझसे???









             एक मिनट !!! कहीं ये मुझे कहीं और ले जा के तो नहीं बेचने वाला ...ज़्यादा पैसों में ?






कमरे 
में घुसते ही मेरे चेहरे का उडा हुआ रंग देख कर कैलाश थोड़ी देर ठिठका।
मेरी आँखों में उन अनकहे सवालों को देख वो समझ गया, कि मेरा यकीन अब डोलने
लगा था।एकाएक मेरा हाथ पकड़, मुझे दीवार से टिकाकर, आँखों में आँखें
डालता हुआ वो बोला, " डर गयी ? तुम्हे कहा था ना...  कि निकाल लूंगा यहां से। ५
तारिख में अभी ४ दिन बाकी हैं। भरोसा टूट चुका है तुम्हारा, जानता हूँ !
इत्ते दिन इस टूटे हुए भरोसे  से गुज़ारा कर चुकी हो, थोड़ा सा भरोसा इस बन्दे पे भी
टिका के देख लो।  ज़बान दी है , मुकरुँगा नहीं।  बस ४ दिन !"







"क्यों कर रहे हो ये सब? तुम्हे इस सब से क्या हासिल होगा ? बोलो!!! ", दबी आवाज़ में, मैं उससे पूछने लगी।  






"शशशश.....
दीवारों के कान और आँखें होती हैं ... कुछ के चेहरे भी होते हैं, संभल
के! तुम्हारे सवालों का एक ही   जवाब दूंगा। और वो तुम हो अवनि , हाँ तुम।
मुझे तुमसे मोहब्बत हो गयी है , और मोहब्बत में दूसरे को खुश देखने की
चाहत भर रहती है।अगर मैं तुम्हे इतना प्यार कर सकता हूँ, तो सोचो तुम्हारा
परिवार तुम्हे कितना प्यार करता होगा। शायद मेरे प्यार को तुम उन चंद
पैसों में तोल रही होगी। पर मुझे अगर वो सब करना होता जो यहां आया हुआ हर
शक़्स  करता है तो शायद मैं  इस तरह तुम्हारी आँखों में आँखें डालके ये सब
कहने की हिम्मत  नहीं जुटा सकता था। मेरी  मोहब्बत अपनी जगह है , मैं बस तुम्हे
यहां से निकालना चाहता हूँ, तुम्हे तुम्हारे अपनों के साथ देखना चाहता
हूँ। "







"क्या आज के ज़माने में तुम जैसे लोग भी होते हैं ?" मैं हैरानगी से उसकी बात काटते हुए बोली।








"अगर
नहीं होते तो मैं यहां नहीं आता... " उसके इतना कहने भर से, मेरे दिल को
सुकून आ गया था, शायद नहीं बल्कि मैं घर वापस ज़रूर जाउंगी ...४ दिन बाद। 
इक मुस्कराहट ने मेरे लबों को घेर लिया।

ये कैसी मोहब्बत है? फरिश्ता खुद चल के मुझे इस जहन्नुम से बचाने आया है।  उसकी आँखों में सच्चाई दिख रही थी।








 आखिर मेरी दुआ क़ुबूल होने के क़रीब है। 










मेरे हाथ एकाएक उसके पैरों को छूने को हुए। मुझे झुका हुआ देख उसने मुझे बीच थाम लिया।  







"मुझे खुदा का दर्जा  मत दो ... इंसान हूँ। तुम्हारे हाथ की इक प्याली चाय को तरसता हूँ , मिलेगी क्या? "








"हाँ अभी लायी ", छन से मेरे पांव  दौड़ पड़े  कमरे के बाहर।










image: www.gettyimages.dk


Life is a withering winter

 When people ask me... do I still remember you? I go in a trance, my lips hold a smile and my eyes are visible with tears about to fall. I r...