Tuesday, January 31, 2017

सांसें...











मोहब्बत कितनी अजीब होती  है न..... 


जब हम इसका इन्तज़ार करते हैं तो ये कोसो दूर भागती है..... और जब इससे रूठ के  चले जाओ, तो यही मोहब्बत .... इश्क़ आपको  डुबाने को ऐसा बेकरार होती है कि  क्या कहने.... 


सच में.... मैंने कभी नहीं सोचा था कि  मुझे भी इश्क़ होगा...  सोचा था  पहली मुलाक़ात  में ही सब कुछ बता दूंगी पर ...... पर उसको देखते ही मैं तो खुद को ही भूल गयी ..... वो एक घंटे की मुलाक़ात शायद मेरी ज़िन्दगी का सब से हसीन वक़्त था..... लेकिन  मेरी किस्मत इतनी अच्छी नहीं, कि उसका साथ मुझे उम्र भर के लिए मिले..... इसलिए आज मैं उसको मिल के सच बता दूंगी। ....." आयशा ! क्या कर रही हो यहाँ बैठे..... " वह आ चुका था।






" बस तुम्हारा  इंतज़ार था केतन ....कैसे हो?




"मैं तो ठीक हूँ मैडम, यहाँ क्यों बुलाया मिलने को।  पता है न, एक हफ्ते में हमारी शादी है। ....और माँ को पता चला तो बहुत डाँट  पड़ेगी....."





"जानती हूँ, पर सुनो...... देखो...... ", पसीने से मेरा माथा भीग चुका था। ..... और केतन अपने रुमाल से उसे पोंछ रहा था।




" जी मैडम, देख रहा हूँ, सुन भी रहा हूँ..... बात क्या है? शादी करने से डर तो नही लग रहा? वैसे तुम्हारा चेहरा देख के तो यही लग रहा है कि  तुम्हारी सिटटी  पिटटी  गुल  हो गयी। ...हा हा हा। ...." 





"देखो केतन, मेरी बात ध्यान से सुनो..... मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती। ....... प्लीज ये शादी रोक दो..... " मैं एका - एक बोल पड़ी।



" आयशा मज़ाक मत करो..... !!!!!"



"ये मज़ाक नहीं है केतन..... मैं सीरियस हूँ.... प्लीज बात को समझो।"



" आखिर बात क्या है? कुछ बोलोगी भी!!!! कब से तुम यही बात कह रही हो, कि  शादी नही कर सकती....पर क्यों? बोलो?"



" क्योकि। .....क्योकि मुझे अस्थमा है.... केतन।"



केतन मुझे घूर घूर के देख रहा था.... मानो उसे भरोसा ही नहीं हो रहा था मेरी बातों पर....



" मैं नहीं चाहती कि  तुम्हारी ज़िन्दगी मेरे साथ बर्बाद हो.... मुझे एक्यूट अस्थमा है। ... और इसका  कोई इलाज नहीं... सिर्फ प्रिकॉशन्स और मेडिसिन्स के नाम पे इनहेलर, क्या तुम एक बीमार लड़की को अपना हमसफ़र बनाओगे? "मैं रोते रोते , अपना दुःख बयाँ  कर रही थी , टेबल को देखते देखते.... फिर नज़र उठाई तो देखा.... देखा कि  केतन जा रहा था।



बड़ी मुश्किल से अपने आंसुओं को पोंछ के मैं घर की तरफ चल पड़ी... रास्ते में यही सोचती रही कि....   जब घरवालों को पता चलेगा तो क्या होगा। ....वे मुझे माफ़ नहीं करेंगे, क्योकि  एक तो अच्छा रिश्ता हाथ से निकल गया और जगत हसाई भी हो गयी....



माँ कोसेगी कि  शादी को एक हफ्ता रह गया था, अगर चुप कर जाती तो क्या बिगड़ जाता.... पापा मुझसे बात नहीं करेंगे.... मामाजी भी नाराज़ हो जायेंगे..... समाज में बातें होंगी... लोग हसेंगे मेरी बेवकूफी पे..... लेकिन .. लेकिन मैं खुद को कैसे माफ़ करती !!!!





घर के बाहर  कार खड़ी  थी .... शायद कोई आया है..... सामने के दरवाज़े से अंदर नहीं जा सकती, नही तो जो कोई आएं हैं ,  बोलेंगे कि  अगले हफ्ते शादी है और ये लड़की बाहर है। .... सोचते हुए मैं पीछे के दरवाज़े से रसोई में होते हुए अपने बैडरूम में चली गयी ... लिविंग रूम से आवाज़ नहीं आ रही, सब शांत , कुछ समझ नहीं आ रहा , झाँकने पे पता चला कि केतन अपने मम्मी पापा के साथ आया है।



दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा है..... मैं वापस अपने कमरे की ओर आ जाती हूँ.... बेचैन सी सांसें तेज़ हो रही हैं , मैं ज़्यादा ही सोच रही हूँ शायद....खुद को शांत रखने  की कोशिश कर रही हूँ.... यही तो मैं चाहती थी... कि ये शादी न हो, तो अब क्यों मैं ही बेचैन हूँ? मेरा इनहेलर नहीं मिल रहा। ..... शायद ड्रावर में है...... लेकिन मैं ठीक हूँ। .. माँ आ गयी। ...

"मिल गयी शान्ति तुझे..... कि और हमारा तमाशा बनाएगी.... बोल.....बोल....क्या दुश्मनी निभायी बेटा  तूने... वाह। ....बहुत  खूब.... "



मुझे कोई जवाब नहीं सूझ रहा...... सांस फूल रही है बस.... बेबस सी खड़ी  बस..... माँ को देख रही हूँ..... माँ को जब तक समझ आया कि  मेरी सांसें रुक रही हैं, दौड़ के वो  इनहेलर ले आई, मेरा दुपट्टा दूर फ़ेंक दिया गले से उतार के.... इनहेलर मेरे होंठों से लगा के मुझे सहारा दिया और सोफे पे बिठा दिया...."



मैं अब ठीक थी.... पहले से..... मगर बात नहीं कर पा   रही थी..... फिर भी मेरा उन्हें बताना ज़रूरी था..... ," माँ, देखो... उनके परिवार को ये नहीं मालूम था कि  मुझे एक्यूट अस्थमा है... और इस तरह मुझे कभी अटैक आ जाये तो वो क्या करेंगे? बोलो....... वो.... वो बाद में दोष ही देते ना.... सारी ज़िन्दगी मुझको..... और आप सबको कि हमने उनको धोखा दिया..... एक बीमार लड़की उनके बेटे के पल्ले बाँध दी, मैं आपकी बेइज़ती नहीं सेहन कर सकुंगी माँ...... "



" आयशा। ... क्या वो तुम्हे पसंद  नहीं ? बोलो बेटा। .. अगले हफ्ते तुम्हारी शादी है.... अब। ...."

"माँ.... मैं केतन से बहुत  प्यार करती हूँ.... मौत का डर कभी नहीं था मुझको..... लेकिन जब से उसको चाहा..... मुझे डर  लगता है.... हम दोनों का साथ न जाने कब तक बना रहेगा..... पा के खोने में जितना दुःख होगा, इसका अंदाजा मुझे अभी से हो रहा है...इससे अच्छा मैं उससे दूर ही रहूँ.... उसे किसी और का बनता देखू.... "



अंदर से बुलाने की आवाज़आयी और माँ और मैं दोनों चल पड़े.... मैं सर झुकाये दोषियों की तरह अपनी सुनवाई का इंतज़ार कर रही हूँ , पापा मुझे अजीब से भाव से देख रहे हैं , केतन के पापा और मम्मी गुस्से से और केतन.... वह एक तरफ खड़ा मुझसे नज़रें नहीं मिला रहा ..... मैं अपने निश्चय पे पक्की थी और मुझे कोई अफ़सोस भी नहीं था.... खुद को थोड़ी और हिम्मत बांधती, मैं उनको नमस्ते करने लगी....



" बेटा। ... इधर आओ। .."केतन के पापा मुझे बुला रहे हैं,.....

मैं उनके पास बैठ जाती हूँ, वह मुझे देख रहे हैं, पर मैं अपनी नज़रें फर्श से नही उठा रही। ...

केतन ने बताया की तुम्हे अस्थमा है और उसे परेशानी है इस शादी में.... "



एक अनकही सी उम्मीद यु बिखर रही थी, जो न चाहते हुए भी  थी.... अच्छा है.... तोड़ दो ये रिश्ता..... अपनी ऊँगली में पहनी सगाई की उस डायमंड रिंग को आधे रस्ते निकाल ही चुकी थी कि  वह बोल पड़े......" तुम न बताती तो ये शादी हो ही जाती पर अब ....... अब ये शादी नहीं...... "



मेरी सांस रुक रही थी.... फिर से और धड़कन भी.... शायद मैं नहीं बचूंगी.......



"अब ये शादी नहीं रुकेगी..... तुम नहीं बताती तो क्या होता.... तुम्हारे माँ पापा  और मामा  ने पहले ही बता दिया था हमे.... और केतन को भी ये पहले से मालूम था..... "



अंगूठी खिसक चुकी थी वापस ऊँगली  में .... और नज़रें उठा के देखा तो चेहरों पे मुस्कान थी और केतन..... हमेशा की तरह... अनबीलीवबली  ड्रामेबाज़!









इमेज सोर्स : www.americannursetoday.com




Friday, January 6, 2017

The Fire has broken.....
















The fire has broken into my heart...




The flames of passion now escape...









I have been hoping since long now...




But I haven't seen your true face...







My wounds have oozed blood...




Now that has dried in this heat wave...







Smokes of anger and hatred arise from my soul...




Burning all dreams I had for me and you...







Forgetting the sweet kisses and unslept nights...




Everything I have burnt, even myself...








Anger and hatred.... 







Has taken over my innocent heart...









Because of your untrue love...




That you played with my heart...




Thursday, January 5, 2017

ज़ख्म-ए-ज़िन्दगी













                                                                 ज़ख्म-ए-ज़िन्दगी







भोपाल से बैंगलोर .. एकतरफा सफ़र 




अब इस उम्र में क्या जाना घर के बाहर ... यही सोच के पिछले चार महीनों से टाल रही थी मैं... पर अब उसका फ़ोन पे दुखी आवाज़ में माँ कह के कॉल काट देना मुझसे बर्दाश्त नहीं होता। मन मार के ही सही मेरा सफर शुरू हो चुका है , अब ज़िन्दगी में इतना कुछ तो हो चुका... चलो ये भी सही। 







प्लेन में पहली बार बैठी हूँ और नज़ारा सच में बिलकुल ही अत्भुत ! शादी के 25 सालों में पहली बार हवाई यात्रा... मन ही मन मुस्कुरा रही हूँ,पति इतना धनवान पर कभी साथ, कहीँ भी नहीं ले गए। और बेटा... वो टिकेट भेजे बिना मान नहीं रहा... मुझे आख़िरकार अपने पास बुला ही लिया उसने।





एयरहोस्टेस कुछ बता रही है... पर मेरा ध्यान तो कहीं और जा रहा है... पंख प्लेन को लगे हुए हैं और उड़ मैं रही हूँ... मगर पीछे... और पीछे... 26 साल पहले... 


"मेरा रिश्ता मांगने  कब आओगे सतीश ? कॉलेज का आखिरी साल भी खत्म होने को है... और घर में रिश्ते को ले के पूछ परख होने लगी है...कब तक टालोगे? अब तो घर में बात करो!" मैं खीझ के बोली।





" मृदुला ... मैं समझता हूँ.... पर तुम जानती हो न .. नौकरी बिना तुम्हारे बाबूजी मुझसे तुम्हारी शादी नहीं करेंगे।  देखो मैं कोशिश कर रहा हूँ... जैसे ही मेरी नौकरी लगेगी... मैं खुद बाउजी के साथ तुम्हारे घर आऊंगा।  अब नाराज़ मत हो...हँस भी दो ना ... "




"एक्सक्यूज़ मी ! प्लीज बेल्ट लगा लीजिये .... प्लेन टेक ऑफ करने वाला है... " एयरहोस्टेस ने मुझे मेरी यादों से बाहर खींच लिया... हड़बड़ी में बेल्ट के सिरे ढूंढने  लगी थी, कि एक दबी सी हँसी मेरे साथ वाली सीट से सुनायी दी...एक नया नवेला  जोड़ा ... घूमने निकले होंगे... हाथों में हाथ डाले, ख़ुशी ज़ाहिर कर रहे थे... उनके इतने नज़दीकियों से एक पल के लिए दिल में ईर्ष्या सी उठने लगी...

प्लेन रनवे पे दौड़ रहा था और कब हवा संग हो लिया... मेरे ख्यालों को भी पता नहीं चला।उस जोड़े को देखते देखते दिल में टीस उठने लगी... मन फिर अतीत में उड़ चला...



"मेरी बात समझने की कोशिश कीजिये मामाजी .....मृदुला उस घर में राज करेगी राज .... इतना पैसा उनके पास... इतने बड़े आदमी। हम जैसे लोग तो दहेज़ जोड़ते जोड़ते ही सारी  ज़िन्दगी परेशान हो जाते.... उन्हें तो कुछ चाहिए ही नहीं। ...बस  एक सुशील लड़की जो उनका घर संभाल ले बस! आखिर हम भी तो अपना फ़र्ज़ पूरा कर गंगा नहा लें... " सुरेश भैया रिश्ता ले के आये थे...





" माना सुरेश तुम ठीक बोल रहे हो पर.... तुम सच जानते ही हो...मृदुला... उसका 6 महीने पहले ही इतना बड़ा एक्सीडेंट हुआ है... और... और...सारी ज़िन्दगी अगर उसे तानें सुन के ही गुज़ारनी  है तो, वो कुंवारी ही ठीक है। " बाबूजी रूआँसे से हो के बोल पड़े। 






"मैं जानता हूँ मामाजी ... और मैंने उन्हें ये बता भी दिया है... आपसे कुछ कहना था... कैसे कहूँ ... दरअसल गिरीश की पहले शादी हो चुकी है... मगर पिछले साल बेटे को जन्म देते वक़्त, उसकी पत्नी इस दुनिया को छोड़ के चली गयी. उन्हें फ़िक्र बस अपने उस बेटे की है ... जो अभी भी माँ के प्यार को तरस रहा है....

देखिये ! इससे अच्छा रिश्ता कहाँ मिलेगा... अपनी बेटी की इज़्ज़त बनी रहेगी ... माँ नहीं बन पाने का इलज़ाम भी धरा का धरा रह जायेगा...आप तो जानते ही हैं ना... समाज और लोग किसी के सग्गे नहीं होते.... लोग कितनी बातें करते हैं । ... कम से काम इस शादी के बहाने ही वह इससे बच जाएगी। बाकी आप की मर्ज़ी !"



सुरेश भैया सर झुका के बैठे रहे। बाबूजी ने हामी भर दी और मेरा रिश्ता पक्का हो गया।  इस बीच मैंने कितनी बार सतीश को संदेसा भेजा पर शायद उसे मिला ही नहीं ...नहीं तो वो ज़रूर आता। या फिर शायद उसे मेरे एक्सीडेंट का पता चल गया... मैं उसके लिए शायद अब बेकार थी.... कौन  लड़का ऐसी लड़की से शादी करेगा जो उसे पिता न बना सके... यही सोच कर मैं भी चुप हो गयी... किस्मत मान के इस रिश्ते को अपना लिया.... भाग्य ! किस्मत ! नसीब ! जो भी बोलो !



"मैम ! क्या लेंगी आप?" एयरहोस्टेस ने फिर मुझे हकीकत में खींच लिया... 




"कुछ नहीं... बस एक गिलास पानी ...प्लीज !" कह के मैं फिर उस नए जोड़े को निहारने लगी।

 सच है....ज़िन्दगी में हम आते तो खाली हाथ हैं... पर इन हाथों में अपनों के हाथ...यही तो चाहत होती है। दिल  में फिर दर्द उठने लगा.... सतीश से बिछड़के सोचा था मेरा पति.... मेरा परमेश्वर , मेरा जीवनसाथी ...शायद किस्मत में थोड़ा प्यार तो होगा? पर नहीं ! उन्हें मेरी परवाह कहाँ थी...वो अपनी मरी हुई बीवी को इतना चाहते थे कि वो उनके लिए अब भी ज़िंदा थी और मैं... ज़िंदा होते हुए भी उनकी कुछ नहीं! 




मेरा काम तो बस उनके बेटे को संभालने भर का था...शायद सिन्दूर तो मांग में उनके नाम का भर लिया था मैंने ....पर सारी उम्र प्यार और अपनेपन के लिए तरसने को ज़िंदा रहना ही  किस्मत में लिखा था ... वो अपने कारोबार को बढ़ाने में इतने व्यस्त थे कि कभी मेरी सुध ली ही नहीं... और मैं पत्नी नहीं, सिर्फ माँ बनके ही रह गयी... सच माँ बनना प्रकृति की देन है... पर मैं तो बिना उस पीड़ा को झेले ऐसी माँ बन गयी, जिसकी पीड़ा सारी उम्र मुझे अकेले ही झेलनी होगी...एक अकेलापन... एक खालीपन... जिसे मैं जितना भी चाहूँ भर नहीं पाऊँगी....



सिरहन होती है जब.... तो चाहती हूँ की मैं भी किसी के नरम हाथों को खुद पे महसूस करूँ... पर शायद ... शायद मेरे नसीब में... बस ये दुःख है...जिसे मैं चाह के भी किसी के आगे बयाँ नहीं कर सकती... आंसू बहाऊँ तो तन्हाई में... खुद के ही गले लग के...



एक-दो साल के बच्चे की मीठी आवाज़ ने मेरी यादों की यात्रा को थोड़ी देर के लिए रोक लिया.... पास में एक परिवार बैठा था.... जिनका बेटा बार-बार शरारत करता.... माँ को पीछे यहाँ-वहाँ  दौड़ा रहा था वो  ...मेरे होंठों पे एका-एक हंसी आ गयी...रोहन भी यही करता था... सारा दिन बाहर आँगन में... शरारतें करता... पढ़ने बिठाओ तो भाग जाता... दिन भर मटरगश्ती... लेकिन जब सयाना हुआ तो इतना कि उम्र को भी मात दे दी उसने... पिता बेशक़ उसे दुलार करते ... पर वो बेफिक्री से अपनी बात सिर्फ मुझे ही बताता... स्कूल की शैतानियाँ , पंगे ...और कौन सी लड़की के घर आज कल तफ़री... सब!  माँ से ज़्यादा दोस्त बना रखा था उसने मुझे.... आखिर उसके हर पल की गवाह जो थी मैं... उसके बचपन ..उसके यौवन... उसकी सगाई और उसकी शादी। 


 मुझसे दूर नहीं जाना चाहता था वो, पर देखो 3 साल से बैंगलोर में अकेले रहा... पढ़ा... नौकरी करी.... और छोकरी भी खुद ही ढून्ढ ली.... मुझे दौड़ाया नहीं... हाहाहा

वक़्त कितना बदल चुका ना... बच्चे समझदार तो माँ बाप को आराम।



प्लेन लैंड होने का टाइम हो गया... एयरहोस्टेस बता रही है... वैसे कौन सा मुझे सामान समेटना है... सो मैं ऊँगली में अंगूठी घुमाने लगी जो रोहन ने हमारी 25वी सालगिरह पे मुझे तोहफे में दी थी... इस शादी से कोई खुश था या नहीं, बस वो ज़रूर खुश था ...और उसकी यही ख़ुशी मेरे लिए अनमोल थी...



औरत की ज़िन्दगी भी बड़ी विचित्र होती है... उससे दूसरों की ख़ुशी जुडी होती है... सतीश के बाद अगर किसी ने मुझे वजह दी मुस्कुराने की, तो वो मेरा बेटा रोहन ही था...



प्लेन रुक चुका था...  और सारे पैसेंजर्स एक एक कर के उतरने लगे ....बैंगलोर की धूप भी कमाल की.... खुशनुमा मौसम.... जैसे मेरा स्वागत कर रहा हो.... एयरपोर्ट पे रोहन और काजल, उसकी पत्नी ...  मेरा इंतज़ार कर रहे थे... मुझसे मिलते ही काजल मेरे पैरों को छूने लगी.... आज के वक़्त में भला कौन मॉडर्न लड़की पैर छूती... यही सोच के हैरान सी हो गयी मैं... और रोहन... वो तो इतना खुश था कि मैं क्या  कहूँ ....काजल को दिल से लगा, जैसे मुझे कुछ देर के लिए बेहोशी से होश आया हो... आखिर मैं सास जो बन चुकी थी... एयरपोर्ट से लेकर घर तक... रोहन के बातों का पिटारा खाली ही नहीं हुआ... "माँ.. बहुत मिस किया तुम्हे... सुबह से बैठा हूँ कि प्लेन कब आएगा.... कब तुम्हे देखूंगा ?' उसकी बातों पे काजल हंसे जा रही थी...,"मम्मीजी ! ये न रात भर सोये नहीं कि आज आप आ रहे हो ... अब तो आपको हम वापस जाने नहीं देंगे..."



प्यार जब किश्तों में मिलता है तो पता नहीं चलता कि  प्यार मिला भी कि नहीं... और जब अचानक से एक मुश्त मिल जाता है तो, ख़ुशी पे भरोसा ही मुश्किल हो जाता है.... प्यार घर को सुखी बना देता है....



आज तो थक गयी मैं... बस आराम करना चाहती हूँ पर रोहन...  मुझे छोड़ के राज़ी ही नहीं... अब भी वैसा ही जी बच्चा.... बचपन में अगर 2 -3  दिन के लिए भी मैं बाबूजी के यहाँ चली जाती तो तूफ़ान मचा देता। ... पता नहीं ये 3 साल मेरे बिना कैसे गुज़ार लीये इसने ?


"माँ तुम आराम करो... वैसे प्लेन तो तुम ही उड़ा के लायी हो लगता है.... थकी हुई सी लगती हो। ..."

कहता हुआ वो मुझे कमरे में छोड़ गया....



नयी जगह नींद भी तो नहीं आती...और ये बैंगलोर ... दिन रात लोग काम करते... आने जाने का कोई वक़्त नहीं यहाँ.... जब जागो तभी सवेरा...पर मुझे 5 बजे के बाद नींद आती ही नहीं....

नाश्ता बनाने रसोई में घुसी ही थी कि रोहन और काजल दोनों नाराज़ हो गए... काजल बेशक़ जॉब करती थी.... पर रोहन की तरह वो भी मेरी परवाह करती थी... कोई काम नहीं करने दिया उसने मुझे...



"माँ... शाम को ऑफिस में पार्टी है... आपको चलना है... तैयार रहना... काजल घर पे ही है आज.... आपके पास... मैं  शाम को आऊंगा... ", रोहन ने फरमान जारी कर दिया... टालने का कोई रास्ता ही नहीं बचा... 






पूरा दिन काजल से बातों में बीता... रोहन की पसंद बहुत ही उम्दा थी... वो जितनी मॉडर्न थी , उतनी ही सुलझी हुई लड़की... बड़ों की इज़्ज़त और परवाह करने वाली... बहु से ज़्यादा सहेली सी बन गयी थी वो मेरी... शाम को खुद तैयार होने से पहले... मुझे तैयार कर गयी... साड़ी से लेकर ज्वेलरी और पर्स तक... सब कुछ।  वैसे लड़कियाँ सवरने  में बड़ा टाइम लगाती हैं, पर वो फ़टाफ़ट तैयार... रोहन आया... उसके लिए काजल ने कॉफ़ी बनायीं और हम दोनों के लिए चाय। 6 बजे  ही हम तीनों निकल चुके रोहन की कार में...






उसका ऑफिस बहुत बड़ी बिल्डिंग में था। हम छोटे शहरवालों के लिए तो बहुत बड़ी थी वो। रोहन बताता जा रहा था.. ऑफिस के बारे में... फर्स्ट फ्लोर पे ये ...सेकंड पे वो... वो खुद 7वी फ्लोर पे।  सबसे मिलवाया उसने, अपने कॉलीग्स से और अंत में अपने बॉस से....



 सोचा नहीं था कि  किस्मत मुझे फिर उसी शक़्स से मिलवा देगी, जिससे बिछड़े न जाने कितना वक़्त बीत चुका ... मेरा गुज़रा कल... आज फिर सामने खड़ा था... रोहन का बॉस बन के.... सतीश!



देखते ही सांसें रुक सी गयी थी मेरी.... हलके से सर हिला के नमस्ते ही कर पायी मैं उसे।  रोहन और काजल अपने साथियों से मिलने में व्यस्त से हो गए... मैं सतीश के सामने खुद को अपराधी सा महसूस कर रही थी... उसकी नज़रें मुझ पर से न हटते देख, मैं खिड़की की तरफ चल पड़ी... रुकी हुई सांसें अक्सर धड़कनों को बढ़ा देती हैं.... कुछ पल के लिए मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है?



"कैसी हो मृदुला.....मुझे उम्मीद नहीं थी, कि तुमसे फिर ज़िन्दगी में मुलाक़ात होगी?" सतीश ने एक सांस में कहा।

" ह्म्म्म... ठीक हूँ. तुम... तुम कैसे हो?" मैं उससे बात नहीं करना चाहती थी... पर कोई रास्ता नहीं था।



"वैसा ही हूँ.... जैसा तुम छोड़ गयी थी... तुमने तो शायद मेरा इंतज़ार भी नहीं किया... पर मैं आज तक करता रहा..." कह के वो टेबल पे पड़े गिलास में पानी डालने लगा।



"तुम्हारा परिवार कहा है? मिलवाओगे नहीं? " मैंने अपने ऊपर से उसका ध्यान हटाने के लिए पूछ लिया।



"परिवार? कौन ? ओहहह... मेरी बीवी- बच्चों के बारे में पूछ रही हो? नहीं है.... मैंने शादी ही नहीं  की... किसी से प्यार किया था... शिद्दत से... सोचा था.... उसी से शादी करूँगा...पर शायद उसने इंतज़ार करना ठीक नही समझा ... तो अकेला हूँ.... नौकरी लगी....  यहीं हूँ पूरे 25 सालों से..."



उसके तीर जैसे शब्दों ने मेरा दिल भेद डाला.... मगर मैं उसे अपने ज़ख्म कैसे दिखाऊं? कैसे बताऊँ उसे कि मेरे साथ क्या- क्या हुआ... वैसे भी अब कोई फ़ायदा नहीं...



कुछ लोगों के लिए इंतज़ार सारी उम्र की वो सज़ा बन जाता है... जिसके हर कदम पे दर्द बेशक़ अपना होता है... पर आंसू दूसरों के लिए होते हैं।  मेरा इंतज़ार कभी ख़त्म नहीं होगा... मुझे पता है! मगर, उसका इंतज़ार..... उसका क्या? मैं एक ऐसी कश्ती पे थी, जिसका मांझी अपनी ही धुन में चल रहा था .... मगर सतीश की कश्ती.... साहिल पे हो के भी... डूब रही थी ... और मैं कुछ नहीं कर सकती थी...















इमेज सोर्स: www. pinterest.com 


Sunday, December 18, 2016

Attractions...








Attractions ablaze...


Fuming desires...


Eyes contain...


Hidden desires...


Locked in dreams...


In sleep rising higher...


To the unknown territory...


No passport required...


Only a gaze temporary...


And permanent becomes a memory...


©Ravinder Kaur


image source: www.hollywood.com


Dust of Dreams......












                                                   Life is just like a dust...

                                                       A dust of dreams...



                                              Dreams that are so tender...

                                              Dreams that are so fragile...



                                             Dreams that are for eternity...

                                                 And some for a while...



                                           Dreams that give birth to hope...

                                      Dreams that encourage, never to stop...



                                           Dreams that are truly mine...


                                           But with you just beautify...



                                                       You and me...

                                                    Together as we...



                                                In hopes, in dreams...

                                                Like waves in seas...



                                             No difference between...

                                                 No space between...



                                   Just like, we were never Me and You...

                                                    But us forever...


 .








Friday, December 2, 2016

Before I walk away...











Before I walk away....let me tell you ....why your eyes distracted me....


It were like my dreams shined....in your eyes like a stream.....

Your heartbeat I could recognise....from a crowd of so many....

Yet my heart didn't understand.... I was not your dream....

So let my heart go free....Of your hands let me flee...

Even though I know...It would take a lifetime for me...

To forget you and restrain...


My heart from loving you again and again....

So I walk alone....along with me your memories....

Until the dawn rises again...am shattered, I Am weak....

To be strong is ....not to hide what...makes you blind in lights....

To be weak is...not to accept....what makes you go on your knees....

In darkness....I crush my dreams....

In lights.....I smile like a queen....

Distinguished this long ago...

Love is not a song....

That everyone can sing....

It's tune would....always change with...every scream...

So close your eyes....that I may not find....

My single dream in your eyes....

So close your lips...

That I may not find ...my smiles in them....

Turn around and run away....I can't stay to call you mine.....

So I say a little prayer....That I may not ...

Never be there....

Where you would find me and my dreams....

Until the dusk melts into the dark night....

I would walk away.... from you and your face.


©Ravinder Kaur

08-10-2016

#walkaway


image source: dailymail.co.uk


Thursday, December 1, 2016

Somewhere....
















Somewhere...sometimes... eyes swell with the sigh of unseen dreams...weeping over forgotten screams...



Somewhere...when I hear your name...it tingles some strings of my heart...playing that forgotten tune...



Somewhere...some unhealed wounds disguise under the reddish skin...occasionally pinching some pain...not letting me forget the things...that hide in the dark forest of the past...



Somewhere...some unspoken words wander...in the garden of silent crests...just to meet the troughs of ears...that would hear...



Somewhere...something lost waits to be discovered again...to reunite...to be in its place again...



Somewhere...some molten dreams...fall like crystals of tears...on the leaves becoming dew...of the night that walks lonely...



Somewhere a spider coils inside...tasting its own pain...making a web of tales...that it had imagined overnight...



Somewhere the night carefully unfolds...so nobody could ever suspect...how it swallows the day .... slowly .



©Ravinder Kaur



image source: wallpaperscraft.com



Life is a withering winter

 When people ask me... do I still remember you? I go in a trance, my lips hold a smile and my eyes are visible with tears about to fall. I r...