Monday, January 28, 2019

घर वापसी (भाग -१० और...ज़िन्दगी चलती रही )




भाग- १ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_99.html 

भाग -२ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_25.html

भाग ३ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_72.html

भाग ४ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_27.html

भाग ५ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/06/blog-post_13.html

भाग ६ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/07/blog-post_5.html

भाग ७ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/10/blog-post.html

भाग ८ यहां पढें https://www.loverhyme.com/2018/11/blog-post.html

भाग ९ यहां पढ़ें  https://ravinderscorner.blogspot.com/2019/01/blog-post_25.html









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घर वापसी (भाग -१०  और...ज़िन्दगी चलती रही )







मैं बीच सड़क चली जा रही थी... सामने से आती हुई कार, बस...मुझे कुछ नज़र नहीं आया।

सब कुछ तो पहले ही लुट चूका था मेरा। वापसी की आस भी अब ख़तम हो चुकी... अब किधर जाऊ ? अम्माजी के यहाँ वापसी का मतलब उन भूखे भेड़ियों का फिर शिकार बन जाऊँ ।  घर बचा ही कहाँ..... मायेका तो शादी पे ही पराया हो गया और ससुराल.... वो तो अब किसी और के हिस्से चला गया।



"पागल हो क्या!!! मरना चाहती हो ? इतनी बड़ी गाडी नहीं दिखती तुम्हे?" , कैलाश मुझे सड़क किनारे ले जा, झिंझोड़ता हुआ बोला।





"मैं.... मैं.... क्या करू कैलाश। ...मेरा सब कुछ लुट चुका....जिस्म, रूह, घर, पति, बच्चा, सब कुछ!

ज़िन्दगी से कोई उम्मीद नहीं थी मुझे, फिर क्यों निकाल लाये मुझे ? क्यों वापसी के ख्वाब दिखाए?

औरत कभी वापसी नहीं कर सकती... देहलीज़ के उस पार गयी हुई औरत चाहे सीता ही क्यों न हो, वापस कभी घर नहीं जा सकती।  मैं तो आम इंसान थी। घर से रूठ के निकली थी  .... देखो... मेरी ... मेरी तो किस्मत ही रूठ गयी मुझसे, देखो न..... मैं...मैं क्या करूँ? बोलो ना..... " मुझे रोता देख, कैलाश ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया।







"अवनि.... सुनो, कुछ ख़त्म नही हुआ है, समझी! मेरी तरफ देखो....देखो ! कुछ नहीं हुआ है !!! 

तुम तब भी जी रही थी जब अम्माजी के यहां थी... तुम अब भी जियोगी.... वो भी इज़्ज़त से.... मेरे साथ ! "











कैलाश एक एनजीओ  में काम करता था।  वो मुझे अपने शहर ले गया ।  वहाँ पहुंच हमने अम्माजी और उनके इस गैरकानूनी काम की पुलिस में एफ़आईआर  करवाई।  साथ ही अम्माजी से मिले उन भ्रष्ट पुलिसवालों की शिकायत भी की।  क्योंकि मानव-तस्करी एक बहुत बड़ा मसला है, उसे सुलझाना इतना आसान नहीं था।  पर कैलाश और उसके एनजीओ ने हर मुमकिन कोशिश की कि केस की सुनवाई हाई-कोर्ट में हो।







रेड लाइट एरिया जितना आदमियों को आकर्षित करता है, उतनी ही खौफनाक वहाँ फँसी हुई औरतों और लड़कियों की ज़िंदगी होती है।







कैलाश मुझे तो निकाल लाया.... "मोहब्बत थी ... पाने की हसरत नहीं..." झूठा ! 



 शायद उसी की किस्मत थी...कि मैं उसके साथ हूँ।  हम जल्दी ही शादी करने हैं।  सब कुछ भुला के।



एक नयी ज़िन्दगी का सफर शुरू होने को है।  रब से जितनी भी शिकायतें थी.... अब नहीं हैं!









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Friday, January 25, 2019

घर-वापसी (भाग - ९ औरत या खिलौना ?)


भाग- १ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_99.html 

भाग -२ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_25.html

भाग ३ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_72.html

भाग ४ यहाँ पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/05/blog-post_27.html

भाग ५ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/06/blog-post_13.html

भाग ६ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/07/blog-post_5.html

भाग ७ यहां पढ़ें https://www.loverhyme.com/2018/10/blog-post.html

भाग ८ यहां पढें https://www.loverhyme.com/2018/11/blog-post.html








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घर-वापसी  (भाग - ९ औरत या खिलौना ?)





















घर आज भी वैसा ही लग रह बाहर से.... जैसा ३ साल पहले था ...







गेट  के अंदर वक़्त जैसे उस खुशनुमा मौसम को रोके रखे हुए था , मेरे लगाए हुए गुलाब खिल चुके थे।  उगी हुई घास वैसी ही हरी, जैसी की मेरे वहाँ रहने पर थी....







आँगन में झूला हवा के साथ हिल रहा था, मेरा बेटा अब भी उसी में झूलता होगा। गेट के दाहिने ओर पट्टी पे लिखा इनका नाम जैसे मुझे ही पुकार रहा है। मैं गेट पे खड़ी उन तमाम यादों को याद कर..... पूरा घर बाहर से देख, आंसुओं से भीग चुकी हूँ.









कैलाश मुझे कुछ कह रहा है पर, पर मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा.... मैं तो जैसे ३ साल पुरानी मेरे ज़ेहन में बसी मेरे घर की तस्वीर को फिर से रंग रही थी.... मैं तो मेरे आंसुओं की बारिश से धूल पड़ी उन यादों को धो उस इंद्रधनुष को सजा रही हूँ, जो आज मेरे आने पे यहां बनेगा।









"अंदर नहीं जाओगी क्या?", कैलाश मुझे अनायास ही पूछ बैठा।







 "हाँ... मगर आज ना , बड़ा अजीब लग रहा है.... अपना ही घर।  सुनो ... शुक्रिया मुझे घर पहुुँचाने के लिए।  तुम सच में नेक  बन्दे हो, तुमने मुझे बचा लिया। .... सारी उम्र ये क़र्ज़ रहेगा मुझपे तुम्हारा। " मैं रोते हुए बोली।







"जाओ भी ... ", वह अपना दर्द होता सर पकड़ता हुआ बोला। मुझे अपनी तरफ बढ़ते देख, वह पलट के चलता बना।  मुस्कुराते हुए मैं गेट की तरफ बढ़ी ही थी कि, अंदर से पुनीत भागता हुआ घर के बरामदे में आ पहुंचा, पीछे-पीछे रत्नेश भी आते हुए दिखे। उन्हें देख मेरा दिल ख़ुशी से मानो धड़कना ही बंद कर देगा। मेरा बेटा ...मेरा पति!








मगर......







उनके पीछे आती हुई उस सुन्दर औरत को देख मेरे पैर, एकाएक रुक गए। उसकी मांग का सिन्दूर और गले का मंगलसूत्र न जाने क्यों मेरे दिल को नोचता सा लगा । मेरे लिए वक़्त थम सा गया।  शायद किस्मत फिर इक बार मुझे धोखा दे गयी।  







मुझे गेट पर देख, रत्नेश भी कुछ देर ठिठक कर देखते रहे।फिर एकाएक वो मेरी तरफ तेज़ी से बढ़े। गेट अंदर वह औरत और पुनीत घर के अंदर जाते हुए दिखे।







रत्नेश गेट खोल बाहर आ चुके थे। उनके चेहरे पे मुझसे मिलने की जितनी ख़ुशी थी, उससे कुछ ज़्यादा एक अजीब सा डर साफ़ नज़र आ रहा था। मेरे पास पहुचते ही उन्होंने मेरे हाथ अपने हाथों में ले लिए।







" कहाँ थी तुम ??? कोई इस तरह रूठ के जाता है क्या ? जानती हो....कितना ढूंढा तुम्हे, पागल कर दिया था मुझे, तुमने यार ! जानती हो पुनीत की क्या हालत थी !", वो बोले ही जा रहे थे।







"तभी तुमने उसे नयी माँ ला दी ?", मैंने उन्हें बीच में काटते हुए कहा।





"अच्छा ही किया ... शायद मैं कभी लौटती ही नहीं, तो वो अनाथ हो जाता।", मैं आंसू पोछते हुए बोली।







"अवनि , मेरी बात तो सुनो,  जानती हो , मैंने तुम्हारे बिना कैसे ये ३ साल गुज़ारे।  तुम.... तुम फ़िक्र मत करो,  अब जो तुम वापस आ चुकी हो, मैं.... मैं उसे तलाक़ दे दूंगा। " रत्नेश के माथे की शिकन उनके अंदर के डर को बखूबी बयां कर रही थी। मुझे तलाक़ दिए बिना या मेरे मरने के पुख्ता न होने पर, उन्हें जेल की सजा जो हो सकती थी। वह मुझे तलाक़ का भरोसा दिलाने लगे।







" रत्नेश!!! औरत कोई खिलौना नहीं कि जब दिल भर गया तो उठा के फ़ेंक दिया ! वो औरत अब तुम्हारी पत्नी , तुम्हारी जीवन-संगिनी है।हमारे बेटे के खाली मन को उसने, मेरी यादों की जगह, खुद के दुलार से भर दिया।

अब मेरी यहां कोई जगह नहीं !" मैंने अपने हाथ रत्नेश के हाथों से खींच लिए।









" अवनि तो ३ साल पहले ही मर चुकी ! मैं तो उसकी लाश भर हूँ। और मरे हुओं को सिर्फ यादों में रखा जाता है.... ज़िंदा लोगों के बीच नहीं। मेरी हकीकत जानने के बाद कि, मैं इन सालों में कहाँ थी, क्या क्या हुआ मेरे साथ.... शायद तुम और तुम्हारा ये समाज मुझे यहां बर्दाश्त नहीं कर पायेगा। इसीलिए मेरा , अवनि रत्नेश मेहरा का मरा हुआ ही रहना ठीक रहेगा। मेरा तर्पण तो वैसे भी तुम कर ही चुके होंगे... अब मेरा लौटना बेमायने होगा !", दिल पत्थर कर, मैंने सब कह दिया।









"अवनि, रुक जाओ प्लीज़..... !" रत्नेश रो रहे थे।









सड़क की दूसरी तरफ खड़ा कैलाश हमें हैरान नज़रों से देखे जा रहा था।  मैं उसकी तरफ बिना देखे चल पड़ी।








मेरी घर-वापसी की हर उम्मीद अब ख़त्म हो चुकी थी .......















इमेज : www.losangelesgatecompany.com

Life is a withering winter

 When people ask me... do I still remember you? I go in a trance, my lips hold a smile and my eyes are visible with tears about to fall. I r...