दर्द-ए बेवफाई
जिन्होंने झेला है दर्द बेवफाई का
वो अक्सर मोहब्बत में पड़ते दिखते हैं।
दर्द लफ़्ज़ों में बयां वो करते हैँ
अश्क आँखों से बहाये जाते हैं।
सरे ज़माने जिनकों अपना वो कहते थे
आज वो ही पराए होते दिखते हैं
खुद से रूठे हुए वो बैठे हैँ
खुद से ख़फ़ा - ख़फ़ा से लगते हैं
उन्हें इल्म न था कि कैसे कब यह हो गया
जो झोका था हवा का कब तूफ़ाँ बन गया
ताश के पत्तों सी ज़िन्दगी रह गयी बनके
हर लम्हा अब बिखरा -बिखरा सा लगता है
वक़्त गुज़रे भी तो क्या अब ???
वक़्त गुज़रे भी तो क्या अब
जहां बैठे थे ,वहीं बैठे हैं अभी भी वो
थम ये जाएँ सांसें अब ये मन्नत है
बंद हो जाये धड़कन तो मन्नत है
जो हो जाये पूरी तो मानेगे
मानेंगे कि खुदा होता है
ना हो पूरी तो मुर्दे से पड़े रहते हैं
ज़िन्दगी सिसकियाँ लेती लगती है
मौत थमती नही सी लगती है।
साँसों की डोर वो जो खींचे तो
तड़प सी महसूस जिस्म में होती है
दीदार एक बार तो हो जाये
फिर चाहे मौत खुद को आ जाये
एक बार तो वो आ जाए
भर के बाहों में वो समझाए
क्यों रुस्वा वो उनको कर गये थे
क्यों बेवफा बन के वो छुप गये थे
उन्होंने झेला दर्द बेवफाई का
अब ज़िंदा ना मुर्दा वो लगते हैं
उन्हें याद कर के जीते हैं
उनका नाम ही जपते रहते हैं
लोग पागल उनको कहते हैं
मगर वो आशिक खुद को कहते हैँ
सिफारिश ये रब से उनकी कर दे कोई
उस सिरफिरे को अंजामें मोहब्बत पहुंचा दे कोई
वो कह गये है सबसे बस इतना ही
ना मिले वो मुझे तो बात नही कोई
मौत ही मेहबूबा हो जाए अब मेरी
आज भी गलियों में वो उनकी
राह तकते हुए से दिखते हैँ
उनसे मोहब्बत की देखो
कैसी सज़ा वो खुद को देते हैं
हॅंस हॅंस के रोते रहते हैं
रो रो के हँसते रहते हैं
रो रो के हँसते रहते हैं। .............
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